Sunday, 24 January 2021

09-10-2020 (Meeting a literary friend/एक साहित्यकार मित्र से मुलाकात)

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एक साहित्यकार मित्र से मुलाकात
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दिनेश कुकरेती 
ज नौ अक्टूबर है। एक खास साहित्यिक मित्र का देहरादून आगमन हो रहा है। वर्तमान में वह बतौर गन्ना आयुक्त कुमाऊं मंडल में तैनात हैं, लेकिन मैं उन्हें एक साहित्यकार के रूप में ही ज्यादा जानता हूं। हालांकि, प्रत्यक्ष उनसे परिचय नहीं है, लेकिन उनकी दो पुस्तकें "खड़कमाफी की स्मृतियों से" और "अथश्री प्रयाग कथा" पढ़ चुका हूं। इसी आधार पर मेरे मनो-मस्तिष्क में उनकी जो छवि उभरती है, संभवतः वैसे ही होंगे भी। नाम है ललित मोहन रयाल। पत्रकार मित्र सतेंद्र डंडरियाल के बेहद करीबी हैं। डंडरियाल जी के माध्यम ही से उत्तरांचल प्रेस क्लब की त्रैमासिक  पत्रिका "गुलदस्ता" के कोविड-19 विशेषांक के लिए उनसे लेख भेजने का आग्रह किया था और उन्होंने  दूसरे दिन ही भेज भी दिया। सो, आज पत्रिका भेंट करने के बहाने उनसे मुलाकात करने का भी अच्छा मौका है। बीती शाम डंडरियाल जी ने जब मुझसे कहा कि रयाल जी आ रहे हैं तो मैंने उन्हें आज दोपहर के आसपास प्रेस क्लब में ले आने को कह दिया।

खैर! मैं भी ग्यारह बजे के आसपास प्रेस क्लब पहुंच  गया। डंडरियाल जी का भी फोन आ गया था कि वह भी साढे़ ग्यारह बजे तक पहुंच जाएंगे और वादे के मुताबिक पहुंच भी गए। उन्होंने मुझे बताया कि रयाल जी भी पहुंच चुके हैं और प्रेस क्लब के प्रवेशद्वार के पास स्थित उज्ज्वल रेस्टोरेंट में बैठे हुए हैं। तब मेरी समझ में आया कि क्लब के कैंपस में जो कार खड़ी है, वह रयाल जी की ही है। लेकिन, मैं उसे देखकर भी उनके पहुंचने का अंदाज नहीं लगा पाया। 

रयाल जी के उज्ज्वल में बैठे होने की सूचना ने मेरी उनसे मिलने की उत्कंठा बढा़ दी और मैं डंडरियाल जी के साथ सीधे उधर ही चल दिया। अंदर जाते ही देखा कि रयाल जी के साथ कथाकार मित्र मुकेश नौटियाल भी बैठे हुए हैं। खुशी दोगुना होनी ही थी। मेल-मुलाकात के बाद दोनों मित्रों से कुछ देर इधर-उधर की बातें हुई और फिर सभी चल पड़े क्लब की ओर। मुझे क्लब कार्यालय के बजाय लाइब्रेरी में बैठना ज्यादा पसंद है, इसलिए साहित्यकार मित्रों को भी लाइब्रेरी में ले जाना ही बेहतर समझा। आदतानुसार चाय की चुस्कियों के बीच कुछ मैंने अपनी कही और कुछ उनकी सुनी। साहित्य और पढ़ने-लिखने की आदत पर भी काफी बातें हुईं और फिर मैंने दोनों मित्रों को "गुलदस्ता" का कोविड-19 विशेषांक और इससे पहले वाला अंक भेंट किया। रयाल जी को कुछ और साहित्यिक लोगों से भी मुलाकात करनी थी, इसलिए बहुत देर बैठना नहीं हो पाया। हां, जाते-जाते वो यह जरूर बता गए कि जल्द उनकी नई पुस्तक आले वाली है, उसी के साथ फिर हम साथ होंगे। मैंने भी नई पुस्तक के लिए शुभकामनाओं के साथ उनसे विदा ली।
09-10-2020
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Meeting a literary friend
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Dinesh Kukreti
Today is October 9.  A special literary friend is coming to Dehradun.  Currently he is posted in Kumaon Mandal as sugarcane commissioner, but I know him more as a litterateur.  Although not a direct introduction to him, I have read two of his books, "From the Memoirs of Khadakmafi" and "Atashree Prayag Katha".  On this basis, the image that emerges in my mind and mind will probably be the same.  The name is Lalit Mohan Rayal.  Journalist friend Satendra is very close to Dandriyal.  Through Dandriyal ji, he was requested to send articles for the Kovid-19 issue of Uttaranchal Press Club's quarterly magazine "Guldasta" and he sent it on the second day itself.  So, today is also a good opportunity to meet him on the pretext of visiting the magazine.  Last evening when Dandriyal ji told me that Rayal ji was coming, I asked him to bring him to the press club around noon today.

Well!  I also reached the Press Club around eleven o'clock.  Dandriyal ji also got a call that he too would reach by half past eleven and reached as promised.  He told me that Rayal ji has also reached and is sitting in the bright restaurant near the entrance of the Press Club.  Then I understood that the car parked on the campus of the club belongs to Rayal ji.  But, even after seeing him, I could not guess his arrival.

The information about Rayalji sitting brightly increased my eagerness to meet him and I went straight along with Dandriyal ji.  As soon as he went inside, he saw that the writer friend Mukesh Nautiyal is sitting with Rayal ji.  Happiness had to be doubled.  After the meeting, both the friends talked for a while here and there and then everyone walked towards the club.  I prefer to sit in the library rather than the club office, so it is better to take the literary friends to the library.  According to the habit, I said something between the tea sips and I listened to them.  There was a lot of talk about literature and reading and writing habits, and then I presented the Kovid-19 special and the earlier number of "Guldasta" to both friends.  Rayalji also had to meet some other literary people, so it was not possible to sit for too long.  Yes, on the go he definitely told that his new book is soon going to be with us, we will be together again.  I also bid him good luck for the new book.

 09-10-2020

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